• नया वक्फ़ कानून: धु्रवीकरण है मकसद

    अपने धु्रवीकरण के एजेंडे की तरफ़ एक और बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कार्यरत नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) की सरकार उस वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 को संसद में पारित कराने की कगार पर है जिसके जरिये मुस्लिमों के मामलों में अब सरकार की सीधी दखल का रास्ता खुल जायेगा

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    अपने धु्रवीकरण के एजेंडे की तरफ़ एक और बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कार्यरत नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) की सरकार उस वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 को संसद में पारित कराने की कगार पर है जिसके जरिये मुस्लिमों के मामलों में अब सरकार की सीधी दखल का रास्ता खुल जायेगा। वक्फ़ संशोधन विधेयक बुधवार 12 बजे लोकसभा में पेश किया गया और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लोकसभा में इस पर चर्चा जारी थी। आंकड़े सरकार के पक्ष में होने के कारण इसे पारित कराने में उसे कोई दिक्कत नहीं होगी ऐसा माना जा रहा है, क्योंकि सदन में जेडीयू और टीडीपी दोनों ने इस विधेयक में भाजपा का साथ दिया है। सरकार इस कानून को चाहे मुस्लिमों के हित में लाया गया कानून बता रही हो, लेकिन यह देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग की धार्मिक आजादी पर बड़ा हमला है जिसके कारण सदन के भीतर धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र में भरोसा रखने वाली तमाम पार्टियों तथा बाहर मुस्लिम संगठनों का इसे लेकर बड़ा विरोध हो रहा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और तमाम मुस्लिम संगठन इसका तभी से विरोध कर रहे हैं जब इसे पहली बार पिछले वर्ष 8 अगस्त को संसद में पेश किया गया था। प्रबल विरोध के चलते पहले तो इसे एक संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया था, परन्तु उस समिति की संरचना ऐसी थी जिसमें सरकार का बहुमत था। मुसलमानों की राय तथा विपक्ष के सुझावों को नज़रंदाज़ कर संशोधन विधेयक को बुधवार को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।

    देश भर में मस्जिदों के रखरखाव हेतु रखी गयी सम्पत्ति यथा जमीनों, दुकानों पर सरकार का नियंत्रण व आधिपत्य का मार्ग प्रशस्त करने वाला यह कानून इसलिये निराशाजनक है क्योंकि इसका मकसद मस्जिदों व मुस्लिमों को उनके धार्मिक-सामाजिक कामों के लिये होने वाली आय से वंचित करने वाला है। मस्जिदों के निर्माण हेतु मिली जमीन का वैसे तो कोई मालिक नहीं होता और माना जाता है कि इसका मालिक अल्लाह होता है। मस्जिद कमेटी इसकी देख-रेख करती है। सरकार या प्रशासन द्वारा यह काम अपने हाथ में लेने का अर्थ है मुस्लिमों की धार्मिक मान्यता व कार्यपद्धति को सिरे से नकारना जिसके कारण इस विधेयक का व्यापक विरोध हो रहा है।

    यह भी आशंका है कि लगभग हर शहर में वक्फ़ के स्वामित्व एवं नियंत्रण वाली ज़मीनों के लिये सिविल के मुकदमे प्रारम्भ हो जायेंगे- फिर चाहे वे भाजपा सरकारों की ओर से हों अथवा उससे जुड़े संगठनों द्वारा दायर किये जायें। जो भी हो, यह तय है कि इस कानून से हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच की खाई और भी गहरा सकती है। पहले से देश भर में मस्जिदों को लेकर हो रहे विवादों की संख्या में इस कानून के अस्तित्व में आ जाने से और भी इज़ाफ़ा होना तय है। हालांकि सरकार का दावा है कि इससे वक्फ़ से जुड़ी सम्पत्तियों का बेहतर प्रबन्धन हो सकेगा, पर सरकार की मंशा साफ है। वह मुस्लिमों की ताकत को कमतर करने तथा उसकी परिसम्पत्तियों पर कब्ज़ा करना चाहती है। इतना ही नहीं, सरकार की ओर से दो गैर मुस्लिम सदस्य भी बोर्ड में शामिल किये जायेंगे। देश में फिलहाल वक्फ़ की सम्पत्ति का प्रबन्धन करने के लिये करीब 30 स्थापित संगठन हैं जो वक्फ़ बोर्ड अधिनियम, 1995 के अंतर्गत काम करते हैं।

    देखना है कि इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद इसे लेकर एनडीए के वे समर्थक दल क्या रुख अख्तियार करते हैं और उन राजनीतिक संगठनों के बारे में उनके वोटर क्या राय बनायेंगे जिन्होंने इस विधेयक को पारित करने में सरकार की मदद की है। विशेषकर, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देसम पार्टी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड, जिनके क्रमश: 16 व 12 लोकसभा सदस्यों के बल पर नरेन्द्र मोदी की सरकार टिकी हुई है। इन दोनों पर इसलिये विशेष ध्यान है क्योंकि ये दोनों ही धर्मनिरपेक्ष पार्टियां कहलाती हैं और इनका बड़ा समर्थक वर्ग अल्पसंख्यकों का है।

    पहली बार जब यह विधेयक 8 अगस्त, 2024 को संसद में पेश किया गया था, तब जेडीयू और टीडीपी दोनों ने खुलकर सरकार का साथ नहीं दिया था, लेकिन अब माहौल बदल गया है। वहीं इस विधेयक के खिलाफ पिछले माह की 7 तारीख को जंतर मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बड़ा प्रदर्शन कर सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि वक्फ़ कानून संशोधन विधेयक (2024) वापस नहीं लिया गया तो इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन होगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अलावा जमाते इस्लामी एवं जमीयत उलेमा ए हिन्द जैसे कई और संगठन शामिल हुए थे जो कि देश के अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब फिर से बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने चेतावनी दी है कि यह विधेयक पारित हुआ तो बोर्ड चुप नहीं बैठेगा। आंदोलन करने के अलावा सभी संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों का उपयोग किया जायेगा।

    इस बिल को लेकर सरकार की मंशा का पता इसी बात से चल जाता है कि इसे पेश करते वक्त कई भ्रामक तथ्य पेश किये गये। संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू और यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 'यदि यह बिल नहीं लाया जाता तो अब तक संसद भवन पर भी वक्फ़ बोर्ड अपना दावा ठोंक चुका होता।' याद हो कि पिछले दिनों जब प्रयागराज में कुम्भ चल रहा था तब भी कहा गया था कि पूरे मेला क्षेत्र को अपनी जमीन पर होने का वक्फ़ दावा करता है। लोकसभा में कांग्रेस के गौरव गोगोई, केसी वेणुगोपाल आदि ने कहा कि सरकार की नज़र वक्फ़ की जमीनों पर है, जो वह मुसलमानों से छीन लेना चाहती है। अपनी संख्या बल पर चाहे सरकार इस विधेयक को पारित करा ले तथा इसे कानून का रूप देने की दिशा में आगे बढ़े , पर इससे देश के दो सबसे बड़े वर्गों के बीच दरार को बड़ा करने की वह हमेशा जिम्मेदार मानी जायेगी। राज्यसभा में यह विधेयक आज गुरुवार को लाया जायेगा जिसे पारित कराने में कोई अड़चन नहीं दिखती। जो भी हो, देखना होगा कि अब इसे लेकर देश के मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल आगे क्या कदम उठाते हैं।

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